November 21, 2025 6:08 am

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प्रकृति-मानव केंद्रित जन आंदोलन राजस्थान की प्रांतीय कमेटी की बैठक का हुआ समापन एवं तीन संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित संगोष्ठी

हमारा निर्भय मेवाड़ @

राजसमन्द।

प्रकृति-मानव केंद्रित जन आंदोलन की प्रांतीय कमेटी राजस्थान की तीन दिवसीय विस्तृत बैठक, स्वास्तिक टॉकीज के सामने,पूर्बिया भवन में संपन्न हुई। बैठक के अंतिम दिन रोजगार, शिक्षा तथा वैज्ञानिक नजरिया या तर्कसंगत मानवतावादी विचारों के प्रचार-प्रसार और युवाओं को संगठित करने के उद्देश्य से श्रीगंगानगर,बाड़मेर,जालौर, जोधपुर और बालोतरा जिलों में प्रकृति-मानव केंद्रित युवा महासंघ की जिला इकाइयों का गठन किया जाएगा।इसी प्रकार राजस्थान में प्राकृतिक या जैविक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रकृति-मानव हितेषी कृषि अभियान की जिला इकाइयों का गठन भी किया जाएगा। किसानों को रासायनिक से प्राकृतिक कृषि में धीरे-धीरे रूपांतरित करने के व्यावहारिक रूप अपनाने का अभियान चलाया जाएगा। इसके साथ अंधविश्वास और अप्रसांगिक विचारों के खिलाफ किसानों, युवाओं और विद्यार्थियों में वैज्ञानिक वास्तविकता वादी नजरिए को विकसित करने के लिए जिला, ब्लाक और वार्ड स्तर पर अध्ययन केंद्र चलाए जाएंगे। महिलाओं को प्रकृति-मानव केंद्रित जन आंदोलन से जोड़ने के लिए पहले से चल रहे महिला संगठनों के सहयोग से लिंग समानता, महिला अधिकारों एवं सभी तरह के भेदभाव को समाप्त करने तथा एक न्यायिक समाज के गठन हेतु जनमत बनाने योगदान दिया जाएगा।
विस्तारित बैठक के बाद महिला मंच राजसमंद,लोक अधिकार मंच राजसमंद तथा प्रकृति-मानव केंद्रित जन आंदोलन(NHCPM)की राजसमंद इकाई द्वारा संयुक्त रूप से एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें प्रदेश कमेटी के सदस्यों ने भी भाग लिया। इस संगोष्ठी के अध्यक्ष मंडल में शकुंतला पामेचा, एडवोकेट भरत कुमावत,भैरू शंकर पूर्बिया थे तथा संगोष्ठी का संचालन सोहनलाल रेगर ने किया। संगोष्ठी के विषय “न्यायपूर्ण समाज-व्यवस्था का गठन कैसे हो?” पर मुख्य वक्ता एडवोकेट मन्नाराम डांगी ने कहा कि समाज को न्यायपूर्ण बनाने की प्रक्रिया मानव समाज बनने की शुरुआत से हजारों वर्ष पहले से चल रही है।मनुष्य की आकांक्षा रही है कि ऐसा न्यायिक समाज बने जिसमें उसके जीवन की सुरक्षा हो एवं अपनी प्रजाति के निरंतर अस्तित्व में रहने की पूरी गारंटी हो, भौतिक जरूरतें पूरी हो,जैसे रोटी, कपड़ा,मकान के साथ अब शुद्ध हवा, पीने लायक पानी और पौष्टिक रोटी तथा जिंदा रहने लायक पर्यावरण की आवश्यकता भी जुड़ गई है। इसके अलावा न्यायिक समाज में मनुष्य के सामाजिक चरित्र होने के नाते न्याय, समानता, विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं सामाजिक पहचान आदि की मानसिक जरूरतें भी पूरी करने वाला समाज बने। हर समाज में शासक वर्ग ने लोगों को इन आकांक्षा और जरूरतों को पूरा करने का वादा किया लेकिन पहले राज-हित और अब राष्ट्रहित के नाम पर इन आवश्यकताओं की पूर्ति करने में कोताही बरती गई।मुख्य वक्ता मन्नाराम डांगी ने कहा कि प्रतियोगी पूंजीवाद में लोगों को मिले नागरिक एवं मानवाधिकारों में कटौती हो रही है तथा लोगों को मिला वोट देने का अधिकार या तो छीना जा रहा है अथवा वोट देने के बाद उसके पास कोई अधिकार नहीं रह जाता। डांगी ने कहा अब वक्त आ गया है कि वर्तमान में पार्टियों के नियंत्रण में चल रहे जनप्रतिनिधित्व लोकतंत्र को सीधे लोगों के नेतृत्व में चलने वाला जन लोकतंत्र में रूपांतरित किया जाए। जहां जनमत से भी कानून बन सके, जिसमें प्रत्येक अगुवा अधिकारी लोगों के प्रति जवाबदेह हो, लोगों से जुड़े सभी मामलों में पूर्ण पारदर्शिता हो, उन्होंने आगे कहा कि न्याय पूर्ण समाज तभी बनेगा जब आर्थिक मामलों में अमीरी-गरीबी की खाई को कम करके व्यक्तिगत आय में न्यूनतम एवं अधिकतम 1:5 से अधिक फर्क ना हो। कोई भी उत्पादन इकाई अथवा कोई प्रोजेक्ट चाहे कितना ही उत्पादक या अधिक धन पैदा करने वाला क्यों ना हो,यदि हवा, पानी,भूमि और जैव-विविधता को नष्ट करता हो तो उसे तुरंत बंद किया जाना चाहिए।
डांगी ने कहा कि आज की दुनिया 200 राष्ट्रों की एक ही अंतर निर्भर तथा अंतर संबंधित दुनिया है,जो विकास दर में वृद्धि से विकास का आकलन करती है, जिसका उद्देश्य अधिकतम लाभ लेना है, इसके लिए वह कानूनी और गैर कानूनी, कहना कुछ और करना कुछ के तरीके काम में लेती हैं तथा एक ऐसी संस्कृति को आगे लाती है जिसमें धन,सत्ता और ताकत को जीवनदाई अमृत मानने की मानसिकता, आचरण और शैली लोकप्रिय बनती है। मन्नाराम ने आगे कहा कि न्यायिक समाज व्यवस्था के गठन के लिए हर स्तर पर मिले हुए विशेष अधिकारों को समाप्त करने की जरूरत है। जैसे संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में पांच महाशक्तियों को प्राप्त”वीटो” अधिकार समाप्त हो,अदालतों को मानहानि का कानूनी अधिकार,सरकारी अफसर के लिए गोपनीयता कानून तथा सेना को कोर्ट मार्शल और नेताओं को पद और गोपनीयता का विशेष अधिकार समाप्त करने की जरूरत है।
संगोष्ठी में राजसमंद झील संरक्षण समिति के संयोजक दिनेश श्रीमाली ने कहा कि इन ग्लोबल विचारों को गांव की चौपाल तक व्यावहारिक धरातल पर ले जाने की जरूरत है। महिला मंच की शकुंतला पामेचा ने कहा कि हम महिला मंच की तरफ से 1988 से महिलाओं की समस्याओं,उनके साथ भेदभाव, घरेलू हिंसा, बालविवाह, दहेज आदि के मामलों को महिला अदालत का गठन करके महिलाओं को राहत दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि न्यायिक समाज बनाने की शुरुआत हमें परिवार में न्याय देकर करनी होगी। पूर्व खनन अभियंता भागचंद ने कहा कि आज वोट का अधिकार छीना जा रहा है उसकी रक्षा करनी होगी।लोक अधिकार मंच के एडवोकेट भरत कुमावत ने रामेश्वर लाल की अगुवाई में अपनी टीम द्वारा ई.वी.एम.मशीन तथा वी.वी.पेड में वोटों की चोरी कैसे होती है,उसका डेमो संगोष्ठी में प्रस्तुत किया।
संगोष्ठी में NHCPM के जिलाध्यक्ष भैरू शंकर पूर्बिया ने बच्चों के बिगड़ने की बात पर चर्चा की। डॉ.भगवान लाल बंशीवाल,एडवोकेट रोशनलाल सोनगरा,उषा झाला, बृज मोहन,रामेश्वरलाल ने विचार व्यक्त किए। बीकानेर से आए NHCPM के जिलाध्यक्ष गिरधारी राम ने कहा कि सभी धर्म ग्रंथों में जीवों में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ माना है,इससे अन्याय की मानसिकता पैदा होती है।मोहम्मद शरीफ छीपा और ज्योत्सना ने गीत/कविता-पाठ किया एवं लीलाधर स्वामी ने गीत प्रस्तुत किया।
जोधपुर से आए घनश्याम डेमोक्रेट ने बताया कि आज का समाज पूंजी आधारित है, इसका नेतृत्व धन के लालची और स्वार्थी, बड़े राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय नेता कर रहे हैं। जिनकी कथनी-करनी में फर्क है, जिनका उद्देश्य जैसे-तैसे धन कमाना और सत्ता हासिल करना है।
ये ऐसा करने के समर्थ इसलिए है कि इन्होंने लोगों की मानसिकता भी धन, सत्ता और ताकत आधारित बना दी है। इस मानसिकता को प्रकृति हित में और मानवता आधारित शांतिपूर्ण रूप से रूपांतरित करके समाज को न्यायिक बनाया जा सकता है।

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